नहीं वो अगली सी रौनक़ दयार-ए-हस्ती की
तबाह-कुन कोई तूफ़ान था शबाब न था
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हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
'आरज़ू' जाम लो झिजक कैसी
आने में झिझक मिलने में हया तुम और कहीं हम और कहीं
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
तड़पते दिल को न ले इज़्तिराब लेता जा
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी
जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है
वो पलट के जल्द न आएँगे ये अयाँ है तर्ज़-ए-ख़िराम से
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
भोले बन कर हाल न पूछ बहते हैं अश्क तो बहने दो
कहीं सर पटकते दीवाने कहीं पर झुलसते परवाने