नाले हैं दिलसिताँ तो फिर आहें हैं बर्छियाँ तो फिर
हम तो ख़मोश बैठे थे आप ने क्यूँ सता दिया
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वाए ग़ुर्बत कि हुए जिस के लिए ख़ाना-ख़राब
मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया
वो क़िस्सा-ए-दर्द-आगीं चुप कर दिया था जिस ने
मोहब्बत वहीं तक है सच्ची मोहब्बत
कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं
करम उन का ख़ुद है बढ़ कर मिरी हद्द-ए-इल्तिजा से
जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
तू ने ऐ इंक़लाब क्या ख़ल्क़ किया
वो पलट के जल्द न आएँगे ये अयाँ है तर्ज़-ए-ख़िराम से
मिसाल-ए-शम्अ अपनी आग में क्या आप जल जाऊँ