जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं
ये क्या हुआ मेरे चेहरे को अर्ज़-ए-हाल के बाद
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कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
किस काम की ऐसी सच्चाई जो तोड़ दे उम्मीदें दिल की
उस की तो एक दिल-लगी अपना बना के छोड़ दे
गोरे गोरे चाँद से मुँह पर काली काली आँखें हैं
जोश-ए-जुनूँ में वो तिरे वहशी का चीख़ना
बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से
हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना
बग़ौर देख रहा है अदा-शनास मुझे
हमारी नाकामी-ए-वफ़ा ने ज़माने की खोल दी हैं आँखें
मुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़र
आराम के थे साथी क्या क्या जब वक़्त पड़ा तो कोई नहीं
तू कहता है ख़ालिक़-ए-शर-ओ-ख़ैर नहीं