बुरी सरिश्त न बदली जगह बदलने से
चमन में आ के भी काँटा गुलाब हो न सका
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कहीं सर पटकते दीवाने कहीं पर झुलसते परवाने
दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार
तलाश-ए-रंग में आवारा मिस्ल-ए-बू हूँ मैं
हल्का था नदामत से सरमाया इबादत का
मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने
नाम मंसूर का क़िस्मत ने उछाला वर्ना
जो दिल साथ छुटने से घबरा रहा है
बग़ौर देख रहा है अदा-शनास मुझे
दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
तेरे तो ढंग हैं यही अपना बना के छोड़ दे
जो बुत है यहाँ अपनी जा एक ही है
शौक़ चढ़ती धूप जाता वक़्त घटती छाँव है