तेरे तो ढंग हैं यही अपना बना के छोड़ दे
वो भी बुरा है बावला तुझ को जो पा के छोड़ दे
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देखें महशर में उन से क्या ठहरे
हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
आज बे-आप हो गए हम भी
वो पलट के जल्द न आएँगे ये अयाँ है तर्ज़-ए-ख़िराम से
कुछ कहते कहते इशारों में शर्मा के किसी का रह जाना
रस उन आँखों का है कहने को ज़रा सा पानी
आँख से दिल में आने वाला
तू ने ऐ इंक़लाब क्या ख़ल्क़ किया
ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भी