देखें महशर में उन से क्या ठहरे
थे वही बुत वही ख़ुदा ठहरे
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तलाश-ए-रंग में आवारा मिस्ल-ए-बू हूँ मैं
मीर-ए-महफ़िल न हुए गर्मी-ए-महफ़िल तो हुए
ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत तू ही बता क्यूँकर न असर ले दिल ही तो है
हम आज खाएँगे इक तीर इम्तिहाँ के लिए
गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया
मुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़र
दम-ब-ख़ुद बैठ के ख़ुद जैसे ज़बाँ गीली है
दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
वअ'दा सच्चा है कि झूटा मुझे मालूम न था
नाले मजबूरों के ख़ाली नहीं जाने वाले
दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया