मुझे रहने को वो मिला है घर कि जो आफ़तों की है रहगुज़र
तुम्हें ख़ाकसारों की क्या ख़बर कभी नीचे उतरे हो बाम से
Anwar Masood
Jaun Eliya
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(905) Peoples Rate This
दोस्त ने दिल को तोड़ के नक़्श-ए-वफ़ा मिटा दिया
फैल गई बालों में सपेदी चौंक ज़रा करवट तो बदल
रस उन आँखों का है कहने को ज़रा सा पानी
लालच भरी मोहब्बत नज़रों से गिर न जाए
दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
फिर चाहे तो न आना ओ आन बान वाले
फिर चाहे तो न आना ओ आन-बान वाले
एक दिल पत्थर बने और एक दिल बन जाए मोम
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
सीने में ज़ब्त-ए-ग़म से छाला उभर रहा है
मोहब्बत वहीं तक है सच्ची मोहब्बत
आने में झिझक मिलने में हया तुम और कहीं हम और कहीं