सीने में ज़ब्त-ए-ग़म से छाला उभर रहा है
शोले को बंद कर के पानी बना रहे हैं
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न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
फैल गई बालों में सपेदी चौंक ज़रा करवट तो बदल
जोश-ए-जुनूँ में वो तिरे वहशी का चीख़ना
हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
पियूँ ही क्यूँ जो बुरा जानूँ और छुपा के पियूँ
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
हर इक शाम कहती है फिर सुब्ह होगी
नहीं वो अगली सी रौनक़ दयार-ए-हस्ती की
नज़र उस चश्म पे है जाम लिए बैठा हूँ
आप अपने से बरहमी कैसी
हम को इतना भी रिहाई की ख़ुशी में नहीं होश