बिस्मिल Poetry

क्या मिला क़ैस को गर्द-ए-रह-ए-सहरा हो कर

ज़ेबा

फ़ैसला क्या हो जान-ए-बिस्मिल का

ज़ेबा

रास्ते में कहीं खोना ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

सर में सौदा भी वही कूचा-ए-क़ातिल भी वही

ज़फ़र अनवर

वाँ नक़ाब उट्ठी कि सुब्ह-ए-हश्र का मंज़र खुला

यगाना चंगेज़ी

कम सितम करने में क़ातिल से नहीं दिल मेरा

वसीम ख़ैराबादी

उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है

वलीउल्लाह मुहिब

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़हे क़िस्मत अगर तुम को हमारा दिल पसंद आया

तिलोकचंद महरूम

हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया

तिलोकचंद महरूम

एक सन्नाटा सा तक़रीर में रक्खा गया था

तसनीम आबिदी

दाद भी फ़ित्ना-ए-बेदाद भी क़ातिल की तरफ़

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई

दस्त-ओ-पा हैं सब के शल इक दस्त-ए-क़ातिल के सिवा

सुरूर बाराबंकवी

ऐसी ख़ुशबू तू मुझे आज मयस्सर कर दे

सुमन ढींगरा दुग्गल

पीव के आने का वक़्त आया है

सिराज औरंगाबादी

इश्क़ में अव्वल फ़ना दरकार है

सिराज औरंगाबादी

ग़म ने बाँधा है मिरे जी पे खला हाए खला

सिराज औरंगाबादी

दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया

सिराज औरंगाबादी

बे-सबब वो न मिरे क़त्ल की तदबीर में था

शऊर बलगिरामी

दिल दिया है हम ने भी वो माह-ए-कामिल देख कर

शेर सिंह नाज़ देहलवी

न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से

ज़ौक़

जब चला वो मुझ को बिस्मिल ख़ूँ में ग़लताँ छोड़ कर

ज़ौक़

बाग़-ए-आलम में जहाँ नख़्ल-ए-हिना लगता है

ज़ौक़

कौन पुरसाँ है हाल-ए-बिस्मिल का

शैख़ अली बख़्श बीमार

मह्व हूँ मैं जो उस सितमगर का

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

इधर माइल कहाँ वो मह-जबीं है

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ

शमीम करहानी

लगता है जिस का रुख़-ए-ज़ेबा मह-ए-कामिल मुझे

शाहिद ग़ाज़ी

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