दो तुंद हवाओं पर बुनियाद है तूफ़ाँ की
या तुम न हसीं होते या में न जवाँ होता
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राहबर रहज़न न बन जाए कहीं इस सोच में
पियूँ ही क्यूँ जो बुरा जानूँ और छुपा के पियूँ
आने में झिझक मिलने में हया तुम और कहीं हम और कहीं
न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
है मोहब्बत ऐसी बंधी गिरह जो न एक हाथ से खुल सके
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ भी थी परवाना भी
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
तू कहता है ख़ालिक़-ए-शर-ओ-ख़ैर नहीं
ख़मोश जलने का दिल के कोई गवाह नहीं
धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची
यही इक निबाह की शक्ल है वो जफ़ा करें मैं वफ़ा करूँ
किस काम की ऐसी सच्चाई जो तोड़ दे उम्मीदें दिल की