ख़मोश जलने का दिल के कोई गवाह नहीं
कि शो'ला सुर्ख़ नहीं है धुआँ स्याह नहीं
Faiz Ahmad Faiz
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बरसों भटका किया और फिर भी न उन तक पहुँचा
जितने हुस्न-आबाद में पहोंचे होश-ओ-ख़िरद खो कर पहोंचे
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
वो बन कर बे-ज़बाँ लेने को बैठे हैं ज़बाँ मुझ से
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
कुछ तो मिल जाए लब-ए-शीरीं से
तू कहता है ख़ालिक़-ए-शर-ओ-ख़ैर नहीं
ख़ुशबू कहीं छुपी है मोहब्बत के फूल की
हाँ दीद का इक़रार अगर हो तो अभी हो
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
आप अपने से बरहमी कैसी