कुछ तो मिल जाए लब-ए-शीरीं से
ज़हर खाने की इजाज़त ही सही
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एक दिल पत्थर बने और एक दिल बन जाए मोम
हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना
नहीं वो अगली सी रौनक़ दयार-ए-हस्ती की
नज़र बचा के जो आँसू किए थे मैं ने पाक
दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया
करम उन का ख़ुद है बढ़ कर मिरी हद्द-ए-इल्तिजा से
मख़रब-ए-कार हुई जोश में ख़ुद उजलत-ए-कार
वो क़िस्सा-ए-दर्द-आगीं चुप कर दिया था जिस ने
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
तलाश-ए-रंग में आवारा मिस्ल-ए-बू हूँ मैं
मोहब्बत नेक-ओ-बद को सोचने दे ग़ैर-मुमकिन है
गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया