मख़रब-ए-कार हुई जोश में ख़ुद उजलत-ए-कार
पीछे हट जाएगी मंज़िल मुझे मालूम न था
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गँवा के दिल सा गुहर दर्द-ए-सर ख़रीद लिया
लालच भरी मोहब्बत नज़रों से गिर न जाए
किस गुल की बू है दामन-ए-दिल में बसी हुई
आप अपने से बरहमी कैसी
हर नफ़स इक शराब का हो घूँट
मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया
दिल मुकद्दर है आईना-रू का
मिरे जोश-ए-ग़म की है अजब कहानी
ये दास्तान-ए-दिल है क्या हो अदा ज़बाँ से
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
जज़्ब-ए-निगाह-ए-शोबदा-गर देखते रहे
अपनी अपनी गर्दिश-ए-रफ़्तार पूरी कर तो लें