अपनी अपनी गर्दिश-ए-रफ़्तार पूरी कर तो लें
दो सितारे फिर किसी दिन एक जा हो जाएँगे
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फिर चाहे तो न आना ओ आन-बान वाले
किसी गुमान-ओ-यक़ीं की हद में वो शोख़-ए-पर्दा-नशीं नहीं है
दिल की ज़िद इस लिए रख ली थी कि आ जाए क़रार
मासूम नज़र का भोला-पन ललचा के लुभाना क्या जाने
होश-ओ-बे-होशी की मंज़िल एक है रस्ते जुदा
जो कान लगा कर सुनते हैं क्या जानें रुमूज़ मोहब्बत के
कुछ दिन की रौनक़ बरसों का जीना
जज़्ब-ए-निगाह-ए-शोबदा-गर देखते रहे
देखें महशर में उन से क्या ठहरे
धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची
जिन रातों में नींद उड़ जाती है क्या क़हर की रातें होती हैं
जवाब देने के बदले वो शक्ल देखते हैं