ढब Poetry

चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद

अहमद नदीम क़ासमी

मुस्तरद हो गया जब तेरा क़ुबूला हुआ मैं

ज़फ़र इक़बाल

इज्ज़ के साथ चले आए हैं हम 'यज़्दानी'

यज़दानी जालंधरी

ज़िंदा रहने का वो अफ़्सून-ए-अजब याद नहीं

यज़दानी जालंधरी

अगरचे इश्क़ में आफ़त है और बला भी है

इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन

ख़ुदाओं की ख़ुदाई हो चुकी बस

यगाना चंगेज़ी

बे-ताबी-ए-दिल ने ज़ार-पा कर

वज़ीर अली सबा लखनवी

ये बंदा हो या तुम हो वाँ ग़ैर न हो कोई

वलीउल्लाह मुहिब

आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब

वलीउल्लाह मुहिब

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है

तैमूर हसन

ग़म में रोता हूँ तिरे सुब्ह कहीं शाम कहीं

ताबाँ अब्दुल हई

लगा पहचानने मैं रास्ते जब

सय्यद इक़बाल रिज़वी शारिब

शगुफ़्ता हो के बैठे थे वो अपने बे-क़रारों में

सय्यद फ़रज़नद अहमद सफ़ीर

डोर

सुबोध लाल साक़ी

फ़िराक़ ओ वस्ल से हट कर कोई रिश्ता हमारा हो

सिद्दीक़ शाहिद

राज़ में रक्खेंगे हम तेरी क़सम ऐ नासेह

शौक़ बहराइची

लक़ड़हारे तुम्हारे खेल अब अच्छे नहीं लगते

शमीम हनफ़ी

कभी भँवर थी जो इक याद अब सुनामी है

शमीम अब्बास

वैसे तो इक दूसरे की सब सुनते हैं

शहज़ाद अहमद

दिल का बुरा नहीं मगर शख़्स अजीब ढब का है

शहज़ाद अहमद

शहर-ए-जुनूँ में कल तलक जो भी था सब बदल गया

शहरयार

मैं नहीं रोता हूँ अब ये आँख रोती है मुझे

शहराम सर्मदी

गुलाब-ब-कफ़

शाहीन ग़ाज़ीपुरी

बोसा देते हो अगर तुम मुझ को दो दो सब के दो

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

खाते हैं हम हचकोले इस पागल संसार के बीच

सरस्वती सरन कैफ़

दिल ही मेरा फ़क़त है मतलब का

सख़ी लख़नवी

लफ़्ज़ का कितना तक़द्दुस है ये कब जानते हैं

सज्जाद बाबर

नहीं है याद कि वो याद कब नहीं आया

साइम जी

पस-ए-रौशनी

साग़र ख़य्यामी

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