गर्भित Poetry

जुनूँ पे अक़्ल का साया है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

दिल अपना सैद-ए-तमन्ना है देखिए क्या हो

ज़िया फ़तेहाबादी

दस्त-ए-तलब दराज़ ज़ियादा न कर सके

ज़ैन रामिश

दस्त-ए-तलब दराज़ ज़ियादा न कर सके

ज़ैन रामिश

नहीं ये रस्म-ए-मोहब्बत कि इश्तिबाह करो

ज़ाहिद चौधरी

वो अक्सर बातों बातों में अग़्यार से पूछा करते हैं

ज़हीर काश्मीरी

ये सब कहने की बातें हैं हम उन को छोड़ बैठे हैं

ज़हीर देहलवी

सिमटने की हवस क्या थी बिखरना किस लिए है

ज़फ़र इक़बाल

कहिए किन लफ़्ज़ों में अश्कों की कहानी लिक्खूँ

यूनुस ग़ाज़ी

भीगी पलकें शौक़ का आलम वक़्त का धारा क्या नहीं देखा

यावर अब्बास

धूप के साथ गया साथ निभाने वाला

वज़ीर आग़ा

दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जिस को माना था ख़ुदा ख़ाक का पैकर निकला

वहीद अख़्तर

हम जो टूटे तो ग़म-ए-दहर का पैमाना बने

वहीद अख़्तर

ये फ़ितरत का तक़ाज़ा था कि चाहा ख़ूब-रूओं को

तिलोकचंद महरूम

कौन से दिल से किन आँखों ये तमाशा देखूँ

तारिक़ राशीद दरवेश

टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह

ताबिश देहलवी

आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल

सय्यद आबिद अली आबिद

वो बे-रुख़ी कि तग़ाफ़ुल की इंतिहा कहिए

सुरूर बाराबंकवी

ऐ हज़रत-ए-ईसा नहीं कुछ जा-ए-सुख़न अब

शोला अलीगढ़ी

अपनों से मुरव्वत का तक़ाज़ा नहीं करते

शोहरत बुख़ारी

बे-उज़्र वो कर लेते हैं व'अदा ये समझ कर

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

क्या करूँ रंज गवारा न ख़ुशी रास मुझे

शाज़ तमकनत

शैख़ ओ बरहमन दोनों हैं बर-हक़ दोनों का हर काम मुनासिब

शौक़ बहराइची

राहगुज़र

शमीम करहानी

जो मिल गई हैं निगाहें कभी निगाहों से

शमीम करहानी

अनजाने जज़ीरों पर

शमीम अल्वी

कहीं हुस्न का तक़ाज़ा कहीं वक़्त के इशारे

शकील बदायुनी

हाए इस मजबूरी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र को क्या करूँ

शकील बदायुनी

मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो

शहज़ाद अहमद

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