लालच भरी मोहब्बत नज़रों से गिर न जाए
बद-ए'तिक़ाद दिल की झूटी नमाज़ हो कर
Javed Akhtar
Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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Rahat Indori
Allama Iqbal
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हाथ से किस ने साग़र पटका मौसम की बे-कैफ़ी पर
कुछ मैं ने कही है न अभी उस ने सुनी है
जो दिल रखते हैं सीने में वो काफ़िर हो नहीं सकते
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
न कर तलाश-ए-असर तीर है लगा न लगा
कानों की ग़रज़ कलाम बतलाता है
दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
तक़दीर पे शाकिर रह कर भी ये कौन कहे तदबीर न कर
हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा
किस गुल की बू है दामन-ए-दिल में बसी हुई
हर साँस है इक नग़्मा हर नग़्मा है मस्ताना
धारे से कभी कश्ती न हटी और सीधी घाट पर आ पहुँची