हर टूटे हुए दिल की ढारस है तिरा वअ'दा
जुड़ते हैं इसी मय से दरके हुए पैमाने
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नहीं वो अगली सी रौनक़ दयार-ए-हस्ती की
दिल दे रहा था जो उसे बे-दिल बना दिया
नज़र बचा के जो आँसू किए थे मैं ने पाक
हद से टकराती है जो शय वो पलटती है ज़रूर
ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत तू ही बता क्यूँकर न असर ले दिल ही तो है
क़ुर्बत बढ़ा बढ़ा कर बे-ख़ुद बना रहे हैं
जहाँ कि है जुर्म एक निगाह करना
दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है
कुछ तो मिल जाए लब-ए-शीरीं से
मुझ को दिल क़िस्मत ने उस को हुस्न-ए-ग़ारत-गर दिया
हैं देस-बिदेस एक गुज़र और बसर में
देखें महशर में उन से क्या ठहरे