तरीके Poetry

बजाए कोई शहनाई मुझे अच्छा नहीं लगता

आमिर अमीर

हद से बढ़ती हुई ता'ज़ीर में देखा जाए

नईम गिलानी

न आए काम किसी के जो ज़िंदगी क्या है

अहमद अली बर्क़ी आज़मी

गाँधी के बा'द

इज़हार मलीहाबादी

महाऋषि-स्वामी-दयानंद

चरख़ चिन्योटी

मुर्ग़-ए-मरहूम

असद जाफ़री

रात-दिन लब पे न हो क्यूँकि बयान-ए-देहली

दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है

किस के नग़्मे गूँजते हैं ज़िंदगी के साज़ में

तेरा अंदाज़-ए-सुख़न सब से जुदा लगता है

ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद

दिल में रक्खा था शरार-ए-ग़म को आँसू जान के

ज़ुहैर कंजाही

जिस भी लफ़्ज़ पे उँगलियाँ रख दे साज़ करे

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

शजर जलते हैं शाख़ें जल रही हैं

ज़िया जालंधरी

क्या सरोकार अब किसी से मुझे

ज़िया जालंधरी

आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो

ज़िया जालंधरी

अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

ज़ेहरा निगाह

सफ़र ख़ुद-रफ़्तगी का भी अजब अंदाज़ था

ज़ेहरा निगाह

नक़्श की तरह उभरना भी तुम्ही से सीखा

ज़ेहरा निगाह

दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते

ज़ेहरा निगाह

अपना हर अंदाज़ आँखों को तर-ओ-ताज़ा लगा

ज़ेहरा निगाह

वक़्त की बर्फ़ है हर तौर पिघलने वाली

ज़ीशान साजिद

न होगा हश्र महशर में बपा क्या

ज़ेबा

ग़ार के मुँह से ये चट्टान हटाने के लिए

ज़ेब ग़ौरी

आबला-पाई है महरूमी है रुस्वाई है

ज़रीना सानी

मैकनिक शाएर

ज़रीफ़ जबलपूरी

फ़िल्मी इश्क़

ज़रीफ़ जबलपूरी

इस बज़्म-ए-तसव्वुर में बस यार की बातें हैं

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

दिल के बुझते हुए ज़ख़्मों को हवा देता है

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

ये जो बिफरे हुए धारे लिए फिरता हूँ मैं

ज़करिय़ा शाज़

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