भूमिका Poetry

कहानी बस इतनी सी थी

मर्यम तस्लीम कियानी

बात में कुछ मगर बयान में कुछ

फ़ारूक़ इंजीनियर

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

कोई रुत्बा तो कोई नाम-नसब पूछता है

हम उस से इश्क़ का इज़हार कर के देखते हैं

अख़्तर हाशमी

ज़ुल्म हद से गुज़रता रहा

जावेद सिद्दीक़ी आज़मी

मरहला

दौर आफ़रीदी

वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

फूल का खिलना बहुत दुश्वार है

ज़ुहैर कंजाही

मेरे गिर्या से न आज़ार उठाने से हुआ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

कहानी

ज़ीशान साहिल

ख़ाक हो जाएँगे किरदार ये जाने माने

ज़ीशान साजिद

जुड़ जाएँ तसावीर तो बन जाए कहानी

ज़ीशान साजिद

उम्र गुज़री है कामरानी से

ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर

उतरें गहराई में तब ख़ाक से पानी आए

ज़करिय़ा शाज़

मैं अच्छा फ़नकार नहीं

ज़ाहिद इमरोज़

परवाना जल के साहब-ए-किरदार बन गया

ज़हीर काश्मीरी

सब्ज़े से सब दश्त भरे हैं ताल भरे हैं पानी से

ज़फ़र सहबाई

झूट बोला है तो क़ाएम भी रहो उस पर 'ज़फ़र'

ज़फ़र इक़बाल

ख़ामुशी अच्छी नहीं इंकार होना चाहिए

ज़फ़र इक़बाल

छुपा हुआ जो नुमूदार से निकल आया

ज़फ़र इक़बाल

जाने किस किरदार की काई मेरे घर में आ पहुँची

ज़फ़र हमीदी

क्यूँ मैं हाइल हो जाता हूँ अपनी ही तन्हाई में

ज़फ़र हमीदी

क़ैद-ए-उल्फ़त का मज़ा ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर में है

यूनुस ग़ाज़ी

मिरे चारों तरफ़ एक आहनी दीवार क्यूँ है

याक़ूब तसव्वुर

लगता है जुदा सब से किरदार 'वसीम' उस का

वसीम मलिक

मफ़रूर कभी ख़ुद पर शर्मिंदा नज़र आए

वसीम मलिक

हम-सफ़र तू ने परों को जो मिरे काटा है

वसीम मलिक

लगता है इन दिनों के है महशर-ब-कफ़ हवा

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

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