भूमिका Poetry (page 4)

यूँ उड़ाती है जो हवा मुझ को

सरफ़राज़ नवाज़

लाख हो माज़ी दामन-गीर

सरदार सोज़

ख़्वाहिश-ए-तख़्त न अब दिरहम-ओ-दीनार की गूँज

सलीम सिद्दीक़ी

ज़लील-ओ-ख़्वार होती जा रही है

सलीम मुहीउद्दीन

कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में

सलीम कौसर

ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे

सलीम कौसर

ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं

सलीम कौसर

वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ

सलीम कौसर

तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते

सलीम कौसर

मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने

सलीम कौसर

क्या बताएँ फ़स्ल-ए-बे-ख़्वाबी यहाँ बोता है कौन

सलीम कौसर

कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे

सलीम कौसर

कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते

सलीम कौसर

एक तो दुनिया का कारोबार है

सलीम फ़राज़

पहले जो हम चले तो फ़क़त यार तक चले

साइम जी

है ये सूरत ग़म के बस इज़हार की

सहर महमूद

अस्ल में मौत तो ख़ुशियों की घड़ी है यारो

सहर महमूद

फिर इस के बाद रास्ता हमवार हो गया

सग़ीर मलाल

कैसे सच से रहे बे-ख़बर आइना

सचिन शालिनी

दो ही किरदार थे कहानी में

सचिन शालिनी

फ़नकार

साबिर दत्त

मुख़्तसर ही सही मयस्सर है

साबिर

क़लम को इस लिए तलवार करना

सबीहा सबा, पाकिस्तान

जो सैल-ए-दर्द उठा था वो जान छोड़ गया

रियाज़ मजीद

बिछड़ते वक़्त की उस एक बद-गुमानी में

रेनू नय्यर

मैं कार-आमद हूँ या बे-कार हूँ मैं

रहमान फ़ारिस

आँसू अपनी चश्म-ए-तर से निकलें तो

राज़िक़ अंसारी

ये वक़्त जब भी लहू का ख़िराज माँगता है

रज़ा मौरान्वी

ना-तवानी में भी वो किरदार होना चाहिए

रौनक़ नईम

कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता

राशिद क़य्यूम अनसर

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