वर्षों Poetry

वही मैं हूँ वही मेरी कहानी है

मोईन निज़ामी

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी

आमिर अमीर

रिसता दर्द

ममता तिवारी

क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए

ज़ुबैर रिज़वी

तुम्हारे ग़म से तौबा कर रहा हूँ

ज़ुबैर अली ताबिश

कैसी ताबीर की हसरत कि 'ज़िया' बरसों से

ज़िया ज़मीर

ये तो हाथों की लकीरों में था गिर्दाब कोई

ज़िया ज़मीर

इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं

ज़ेहरा निगाह

समझौता

ज़ेहरा निगाह

इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं

ज़ेहरा निगाह

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ज़ीशान साहिल

किस क़दर महदूद कर देता है ग़म इंसान को

ज़ीशान साहिल

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

फ़र्ज़ बरसों की इबादत का अदा हो जैसे

ज़हीर काश्मीरी

चल पड़े तो फिर अपनी धुन में बे-ख़बर बरसों

ज़फ़र कलीम

धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ

ज़फ़र गोरखपुरी

मैं जीना चाहता हूँ मगर

यूसुफ़ तक़ी

तर्क उल्फ़त में भी उस ने ये रिवायत रक्खी

यशब तमन्ना

धीरे धीरे सर में आ कर भर गया बरसों का शोर

याक़ूब आमिर

क्या हुआ हम से जो दुनिया बद-गुमाँ होने लगी

याक़ूब आमिर

इज़्ज़त उन्हें मिली वही आख़िर बड़े रहे

वासिफ़ देहलवी

जो मुझ में तुझ में चला आ रहा है बरसों से

वसीम बरेलवी

ख़ुशी दामन-कशाँ है दिल असीर-ए-ग़म है बरसों से

वक़ार मानवी

हमारी ज़िंदगी कहने की हद तक ज़िंदगी है बस

वक़ार मानवी

ख़ुशी दामन-कशाँ है दिल असीर-ए-ग़म है बरसों से

वक़ार मानवी

सिदरत-उल-वस्ल के साए का तलबगार हूँ मैं

वक़ार ख़ान

ज़िंदगी दस्त-ए-तह-ए-संग रही है बरसों

वकील अख़्तर

आज़ाद तो बरसों से हैं अरबाब-ए-गुलिस्ताँ

वाहिद प्रेमी

ठहरी है तो इक चेहरे पे ठहरी रही बरसों

वहीद अख़्तर

क्यूँ तिरी क़ंद-लबी ख़ुश-सुख़नी याद आई

वहीद अख़्तर

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