वर्षों Poetry (page 2)

ख़ुश्बू है कभी गुल है कभी शम्अ कभी है

वहीद अख़्तर

हम ने घटता-बढ़ता साया पग-पग चल कर देखा है

विश्वनाथ दर्द

मेरा वहम-ओ-गुमान रहने दे

विशाल खुल्लर

और सब कुछ बहाल रक्खा है

विनीत आश्ना

जीवन है पल पल की उलझन किस किस पल की बात करें

विलास पंडित मुसाफ़िर

रात कई आवारा सपने आँखों में लहराए थे

उनवान चिश्ती

बड़े तहम्मुल से रफ़्ता रफ़्ता निकालना है

उमैर नजमी

यूँ तो बरसों न पिलाऊँ न पियूँ ऐ ज़ाहिद

तिलोकचंद महरूम

मुस्कुराते हुए फूलों का अरक़ सब का है

तिलक राज पारस

ख़ुद से भी इक बात छुपाया करता हूँ

तनवीर सामानी

दूर तक परछाइयाँ सी हैं रह-ए-अफ़्कार पर

तख़्त सिंह

जो शजर बे-लिबास रहते हैं

ताहिर फ़राज़

अपनी साल-गिरह पर

ताबिश कमाल

तन-आसानी नहीं जाती रिया-कारी नहीं जाती

सय्यद ज़मीर जाफ़री

भला क्या ता'ना दूँ ज़ुहहाद को ज़ुहद-ए-रियाई का

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

ऐसा भी नहीं दर्द के मारे नहीं देखे

सय्यद सादिक़ अली हसीन

तर्क-ए-उल्फ़त में कोई यकता न था

सय्यद मुनीर

सती

सुरूर जहानाबादी

फ़क़ीरों पे अपने करम इक ज़रा कर

सुरूर जहानाबादी

तन्हाइयों की बर्फ़ थी बिस्तर पे जा-ब-जा

सुल्तान अख़्तर

साँस उखड़ी हुई सूखे हुए लब कुछ भी नहीं

सुल्तान अख़्तर

मुद्दत हुई राहत भरा मंज़र नहीं उतरा

सुलेमान ख़ुमार

इस तरह से तर्जुमानी कर गया

सुबहान असद

मिरे चेहरे से ग़म आँखों से हैरानी न जाएगी

सिद्दीक़ मुजीबी

हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

दूद-ए-दिल से है ये तारीकी मिरे ग़म-ख़ाना में

ज़ौक़

दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से

ज़ौक़

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

शाज़ तमकनत

जाने वाले तुझे कब देख सकूँ बार-ए-दिगर

शाज़ तमकनत

शिकोह-ए-ज़ात से दुश्मन का लश्कर काँप जाता है

शायान क़ुरैशी

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