हम ने घटता-बढ़ता साया पग-पग चल कर देखा है

हम ने घटता-बढ़ता साया पग-पग चल कर देखा है

हर राही इक धुँदला-पन है हर जादा इक धोका है

हम भी किसी लम्हे की उँगली थाम के इक दिन चल देंगे

तू ने तो ऐ जाने वाले जाने को क्या जाना है

माज़ी की बे-नाम गुफा में बैठे बैठे सोचते हैं

नगर-नगर है शोहरत अपनी घर-घर अपना चर्चा है

हम तुम दोनों दोस्त पुराने सदियों की मजबूरी के

इस से बढ़ कर तुम ही बोलो और भी कोई रिश्ता है

आते जाते हर राही से पूछ रहा हूँ बरसों से

नाम हमारा ले कर तुम से हाल किसी ने पूछा है

ख़ुद को पाने की चिंता ने ज्ञान जगाया दूरी का

घर अपना है शहर पराया बीच में लम्बा रस्ता है

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In Hindi By Famous Poet Vishvanath Dard. is written by Vishvanath Dard. Complete Poem in Hindi by Vishvanath Dard. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.