हम ने अपने आप से जब बात की
आ गई रस्ते में इक दीवार सी
अपने दरवाज़े पे दस्तक दे कोई
एक सन्नाटे पे दुनिया खो गई
कौन से नुक़्ते पे ला कर तोड़ते
उम्र-ए-रफ़्ता तेरी यादों की कड़ी
'दर्द' अपना हम तआरुफ़ दें तो क्या
हम तो अपने आप से हैं अजनबी
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जिस जगह भी मिला घना साया
जाने कितना जीवन पीछे छूट गया अनजाने में
अगर कुछ मोड़ रस्ते में न आते
हैं किस लिए उदास कोई पूछता नहीं
बहुत उकता गया हूँ अपने जी से
तन्हाई में दिखते लम्हे जब कुछ याद दिलाते हैं
अब हम चराग़ बन के सर-ए-राह जल उठे
अब तो सोच लिया है यारो दिल का ख़ूँ हो जाने दूँ
हम ने घटता-बढ़ता साया पग-पग चल कर देखा है
तुम ने हमारा साथ दिया तो ख़ुद को हम पा जाएँगे