वर्षों Poetry (page 7)

दुनिया को कहाँ तक जाना है

फ़रहत एहसास

दर्द का समुंदर है सिर्फ़ पार होने तक

फ़रह इक़बाल

खुली न मुझ पे भी दीवानगी मिरी बरसों

फ़राग़ रोहवी

कभी यक़ीं से हुई और कभी गुमाँ से हुई

फ़राग़ रोहवी

जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं

फ़राग़ रोहवी

ग़म-ए-जानाँ के सिवा कुछ हमें प्यारा न हुआ

फ़ैज़ी निज़ाम पुरी

तेरी आँखें न रहीं आईना-ख़ाना मिरे दोस्त

फ़ैसल अजमी

मुद्दतों के बा'द जब पहुँचा वो अपने गाँव में

एजाज़ तालिब

कहाँ गई एहसास की ख़ुशबू फ़ना हुए जज़्बात कहाँ

देवमणि पांडेय

भला ये कौन है मेरे ही अंदर मुझ से रंजिश में

दर्शिका वसानी

हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है

चित्रांश खरे

देने वाले ये ज़िंदगी दी है

ब्रहमा नन्द जलीस

यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला

बिमल कृष्ण अश्क

बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

बेवफ़ा कहने से क्या वो बेवफ़ा हो जाएगा

बेख़ुद देहलवी

अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए

बेदम शाह वारसी

ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है

बशीर बद्र

अलविदा'अ

बाक़र मेहदी

माँ

बक़ा बलूच

मैं, एक और मैं

बलराज कोमल

कौन कहता है ठहर जाना है

बकुल देव

कैसे कैसे स्वाँग रचाए हम ने दुनिया-दारी में

अज़रा नक़वी

पाते हैं कुछ कमी सी तस्वीर-ए-ज़िंदगी में

अज़ीज़ तमन्नाई

रसूल-ए-काज़िब

अज़ीज़ क़ैसी

हरम का आईना बरसों से धुँदला भी है हैराँ भी

अज़ीज़ हामिद मदनी

हटा के मेज़ से इक रोज़ आईना मैं ने

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

उतर कर पानियों में चाँद महव-ए-रक़्स रहता है

अज़हर नक़वी

कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं

अज़हर इनायती

फ़न उड़ानों का जब ईजाद किया था मैं ने

अज़हर इनायती

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