खुली न मुझ पे भी दीवानगी मिरी बरसों
मिरे जुनून की शोहरत तिरे बयाँ से हुई
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मिरी मैली हथेली पर तो बचपन से
मेरी दादी
तुम्हारा चेहरा तुम्हें हू-ब-हू दिखाऊँगा
स्कूल-टीचर
गुड़िया की शादी
ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
नवाह-ए-जाँ में किसी के उतरना चाहा था
जो भी अंजाम हो आग़ाज़ किए देते हैं
दिन में भी हसरत-ए-महताब लिए फिरते हैं
मैं एक बूँद समुंदर हुआ तो कैसे हुआ
किसी ने राह का पत्थर हमीं को ठहराया
यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं