किसी ने राह का पत्थर हमीं को ठहराया
ये और बात कि फिर आईना हमीं ठहरे
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हमारे तन पे कोई क़ीमती क़बा न सही
हमारे साथ उमीद-ए-बहार तुम भी करो
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
कभी हरीफ़ कभी हम-नवा हमीं ठहरे
कम्पयूटर
उर्दू
एक रहें हम
मुझ में है यही ऐब कि औरों की तरह मैं
गुड़िया की शादी
ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं
कहीं सूरज कहीं ज़र्रा चमकता है