ख़ूब निभेगी हम दोनों में मेरे जैसा तू भी है
थोड़ा झूटा मैं भी ठहरा थोड़ा झूटा तू भी है
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मेरी दादी
लबों के सामने ख़ाली गिलास रखते हैं
कौन आता है अयादत के लिए देखें 'फ़राग़'
कम्पयूटर
तुम्हारा चेहरा तुम्हें हू-ब-हू दिखाऊँगा
दिमाग़ अहल-ए-मोहब्बत का साथ देता नहीं
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
यारो हुदूद-ए-ग़म से गुज़रने लगा हूँ मैं
इक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा 'फ़राग़'
ज़रा सी बात पे क्या क्या न खो दिया मैं ने
जिस दिन से कोई ख़्वाहिश-ए-दुनिया नहीं रखता
न जाने कैसा समुंदर है इश्क़ का जिस में