हक़ीर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हक़ीर

हक़ीर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का हक़ीर
नामहक़ीर
अंग्रेज़ी नामHaqeer

यक-ब-यक तर्क न करना था मोहब्बत मुझ से

या उस से जवाब-ए-ख़त लाना या क़ासिद इतना कह देना

टूटें वो सर जिस में तेरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं

थोड़ी तकलीफ़ सही आने में

साक़िया ऐसा पिला दे मय का मुझ को जाम तल्ख़

मुझे अब मौत बेहतर ज़िंदगी से

क्यूँ न का'बे को कहूँ अल्लाह का और बुत का घर

क्या जानें उन की चाल में एजाज़ है कि सेहर

की किसी पर न जफ़ा मेरे बा'द

खुली जो आँख मिरी सामना क़ज़ा से हुआ

ख़ूब मिल कर गले से रो लेना

जब से कुछ क़ाबू है अपना काकुल-ए-ख़मदार पर

जानता उस को हूँ दवा की तरह

इश्क़ के फंदे से बचिए ऐ 'हक़ीर'-ए-ख़स्ता-दिल

हक़ारत की निगाहों से न फ़र्श-ए-ख़ाक को देखो

देखा बग़ौर ऐब से ख़ाली नहीं कोई

छा गई एक मुसीबत की घटा चार तरफ़

चार दिन की बहार है सारी

बुत-कदे में भी गया का'बे की जानिब भी गया

बुत को पूजूँगा सनम-ख़ानों में जा जा के तो मैं

बंद-ए-क़बा पे हाथ है शरमाए जाते हैं

ब-ख़ुदा सज्दे करेगा वो बिठा कर बुत को

तिफ़्ली पीरी ओ नौजवानी हेच

साक़िया ऐसा पिला दे मय का मुझ को जाम तल्ख़

ना-तवाँ वो हूँ कि दम भर नहीं बैठा जाता

किस की उस तक रसाई होती है

काबा-ए-दिल को अगर ढाइएगा

जानता उस को हूँ दवा की तरह

हमारी वो वफ़ादारी कि तौबा

दुश्मन हैं वो भी जान के जो हैं हमारे लोग

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