या उस से जवाब-ए-ख़त लाना या क़ासिद इतना कह देना
बचने का नहीं बीमार तिरा इरशाद अगर कुछ भी न हुआ
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टूटें वो सर जिस में तेरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं
की किसी पर न जफ़ा मेरे बा'द
छा गई एक मुसीबत की घटा चार तरफ़
बुत-कदे में भी गया का'बे की जानिब भी गया
ना-तवाँ वो हूँ कि दम भर नहीं बैठा जाता
काबा-ए-दिल को अगर ढाइएगा
ब-ख़ुदा सज्दे करेगा वो बिठा कर बुत को
थोड़ी तकलीफ़ सही आने में
ख़ूब मिल कर गले से रो लेना
दुश्मन हैं वो भी जान के जो हैं हमारे लोग
साक़िया ऐसा पिला दे मय का मुझ को जाम तल्ख़
इश्क़ के फंदे से बचिए ऐ 'हक़ीर'-ए-ख़स्ता-दिल