ख़ूब मिल कर गले से रो लेना
इस से दिल की सफ़ाई होती है
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ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ
मुझे अब मौत बेहतर ज़िंदगी से
बहार आई है सदमे से हमारा हाल अबतर है
हक़ारत की निगाहों से न फ़र्श-ए-ख़ाक को देखो
किस की उस तक रसाई होती है
काबा-ए-दिल को अगर ढाइएगा
जानता उस को हूँ दवा की तरह
हमारी वो वफ़ादारी कि तौबा
चार दिन की बहार है सारी
की किसी पर न जफ़ा मेरे बा'द
थोड़ी तकलीफ़ सही आने में