चार दिन की बहार है सारी
ये तकब्बुर है यार-ए-जानी हेच
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(791) Peoples Rate This
साक़िया ऐसा पिला दे मय का मुझ को जाम तल्ख़
किस की उस तक रसाई होती है
हमारी वो वफ़ादारी कि तौबा
तिफ़्ली पीरी ओ नौजवानी हेच
खुली जो आँख मिरी सामना क़ज़ा से हुआ
की किसी पर न जफ़ा मेरे बा'द
क्यूँ न का'बे को कहूँ अल्लाह का और बुत का घर
ब-ख़ुदा सज्दे करेगा वो बिठा कर बुत को
थोड़ी तकलीफ़ सही आने में
ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ
हक़ारत की निगाहों से न फ़र्श-ए-ख़ाक को देखो