छा गई एक मुसीबत की घटा चार तरफ़
खुले बालों जो वो दरिया से नहा कर निकले
Habib Jalib
Parveen Shakir
Anwar Masood
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(684) Peoples Rate This
इश्क़ के फंदे से बचिए ऐ 'हक़ीर'-ए-ख़स्ता-दिल
क्यूँ न का'बे को कहूँ अल्लाह का और बुत का घर
ऐ यास जो तू दिल में आई सब कुछ हुआ पर कुछ भी न हुआ
ना-तवाँ वो हूँ कि दम भर नहीं बैठा जाता
बुत-कदे में भी गया का'बे की जानिब भी गया
जानता उस को हूँ दवा की तरह
देखा बग़ौर ऐब से ख़ाली नहीं कोई
या उस से जवाब-ए-ख़त लाना या क़ासिद इतना कह देना
चार दिन की बहार है सारी
टूटें वो सर जिस में तेरी ज़ुल्फ़ का सौदा नहीं
बंद-ए-क़बा पे हाथ है शरमाए जाते हैं