आबिद मलिक कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आबिद मलिक
नाम | आबिद मलिक |
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अंग्रेज़ी नाम | Abid Malik |
ज़मीं के ग़र्ब से सूरज तुलूअ' करता हूँ
ज़ख़्म देखे जिस्म देखा और पहचाना उसे
सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी
रोज़ इक बाग़ गुज़रता है इसी रस्ते से
मैं इस कहानी में तरमीम कर के लाया हूँ
गले लगाए मुझे मेरा राज़-दाँ हो जाए
ऐ ख़ुदा एक बार मिल मुझ से
अब मनाना उसे मुश्किल है कि ये आख़िरी पल
ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
ये मोहब्बत कोई अंजान सी शय होती थी
सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें
पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से
निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स
मियाँ ये इश्क़ तो सब टूट कर ही करते हैं
हज़ार ताने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
फ़लक से कैसे मिरा ग़म दिखाई देगा तुझे
बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है
मैं ने लोगों को न लोगों ने मुझे देखा था
क्यूँ चलती ज़मीं रुकी हुई है
कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है
हज़ार ता'ने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ
दश्त में उस का आब-ओ-दाना है
आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में
आख़िरी बार ज़माने को दिखाया गया हूँ