ज़ख़्म देखे जिस्म देखा और पहचाना उसे
धीरे धीरे फिर मुझे मैं याद आने लग गया
हैरतों को देखता था कुछ भी कह पाता न था
आख़िर इक दिन आइना आँसू बहाने लग गया
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फ़लक से कैसे मिरा ग़म दिखाई देगा तुझे
सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें
क्यूँ चलती ज़मीं रुकी हुई है
मैं इस कहानी में तरमीम कर के लाया हूँ
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से
अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी
आख़िरी बार ज़माने को दिखाया गया हूँ
हज़ार ता'ने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
हज़ार ताने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी