सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी
खड़ा हुआ है कोई और आदमी मिरे साथ
वो मुझ को पहले भी तन्हा कहाँ समझता था
फिर उस ने मेरी उदासी भी देख ली मिरे साथ
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Habib Jalib
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(808) Peoples Rate This
गले लगाए मुझे मेरा राज़-दाँ हो जाए
आसूदगान-ए-हिज्र से मिलने की चाह में
मैं ने लोगों को न लोगों ने मुझे देखा था
मैं इस कहानी में तरमीम कर के लाया हूँ
कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
ज़मीं के ग़र्ब से सूरज तुलूअ' करता हूँ
निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स
क्यूँ चलती ज़मीं रुकी हुई है
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
अब मनाना उसे मुश्किल है कि ये आख़िरी पल