मैं इस कहानी में तरमीम कर के लाया हूँ
जो तुम को पहले सुनाई थी मुस्तरद समझो
मुझे ख़ुदा से नहीं है कोई गिला लेकिन
तुम आदमी हो तो फिर आदमी की हद समझो
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Anwar Masood
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(830) Peoples Rate This
क्यूँ चलती ज़मीं रुकी हुई है
सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी
ज़ख़्म देखे जिस्म देखा और पहचाना उसे
गले लगाए मुझे मेरा राज़-दाँ हो जाए
हज़ार ता'ने सुनेगा ख़जिल नहीं होगा
बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है
दश्त में उस का आब-ओ-दाना है
निकाल लाए हैं सब लोग उस के अक्स में नक़्स
आख़िरी बार ज़माने को दिखाया गया हूँ
मैं ने लोगों को न लोगों ने मुझे देखा था