बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
मैं अपने सामने वाली गली में रहता हूँ
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पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से
ज़मीं के ग़र्ब से सूरज तुलूअ' करता हूँ
रोज़ इक बाग़ गुज़रता है इसी रस्ते से
आख़िरी बार ज़माने को दिखाया गया हूँ
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें
शहर से जब भी कोई शहर जुदा होता है
गले लगाए मुझे मेरा राज़-दाँ हो जाए
ये मोहब्बत कोई अंजान सी शय होती थी
इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ