फ़लक से कैसे मिरा ग़म दिखाई देगा तुझे
कभी ज़मीन पे आ और ज़मीं से देख मुझे
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1016) Peoples Rate This
सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी
गले लगाए मुझे मेरा राज़दाँ हो जाए
ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
ज़मीं के ग़र्ब से सूरज तुलूअ' करता हूँ
कौन कहता है कि वहशत मिरे काम आई है
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
सब मुझे ढूँडने निकले हैं बुझा कर आँखें
अब मनाना उसे मुश्किल है कि ये आख़िरी पल
ज़ख़्म देखे जिस्म देखा और पहचाना उसे
क्यूँ चलती ज़मीं रुकी हुई है
ऐ ख़ुदा एक बार मिल मुझ से