ज़ख़्म और पेड़ ने इक साथ दुआ माँगी है
देखिए पहले यहाँ कौन हरा होता है
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क्यूँ चलती ज़मीं रुकी हुई है
पूछता फिरता हूँ मैं अपना पता जंगल से
दश्त में उस का आब-ओ-दाना है
ऐ ख़ुदा एक बार मिल मुझ से
बड़े सुकून से अफ़्सुर्दगी में रहता हूँ
अभी से इस में शबाहत मिरी झलकने लगी
आख़िरी बार ज़माने को दिखाया गया हूँ
ये कार-ए-ख़ैर है इस को न कार-ए-बद समझो
ज़ख़्म देखे जिस्म देखा और पहचाना उसे
मियाँ ये इश्क़ तो सब टूट कर ही करते हैं
गले लगाए मुझे मेरा राज़-दाँ हो जाए