इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ
इक अजनबी की तरह है ये ज़िंदगी मिरे साथ
जो वक़्त काट रही है हँसी-ख़ुशी मिरे साथ
सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी
खड़ा हुआ है कोई और आदमी मिरे साथ
सफ़र में पेड़ का साया नहीं मिलेगा मुझे
बस इतना सुनते ही दीवार चल पड़ी मिरे साथ
वो मुझ को पहले भी तन्हा कहाँ समझता था
फिर उस ने मेरी उदासी भी देख ली मिरे साथ
सुना है हाल बताने से दर्द घटता है
सो एक रोज़ चराग़ों ने बात की मिरे साथ
अलाव जलता रहा जब तलक मैं चलता रहा
मैं रुक गया तो कहानी भी रुक गई मिरे साथ
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