रंज Poetry

दयार-ए-ख़्वाब को निकलूँगा सर उठा कर मैं

ग़ुलाम हुसैन साजिद

नद्दी ये जैसे मौज में दरिया से जा मिले

जानाँ मलिक

अफ़्सूँ पहली बारिश का

मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

अकेले होने का ख़ौफ़

ज़ुबैर रिज़वी

वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए

ज़ुबैर रिज़वी

कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर

ज़ुबैर रिज़वी

हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे

ज़ुबैर रिज़वी

उफ़्ताद तबीअत से इस हाल को हम पहुँचे

ज़िया जालंधरी

अकेले होने का ख़ौफ़

ज़ेहरा निगाह

ये क्या सितम है कोई रंग-ओ-बू न पहचाने

ज़ेहरा निगाह

रास्ते में कहीं खोना ही तो है

ज़ेब ग़ौरी

मुझ से ऐसे वामांदा-ए-जाँ को बिस्तर-विस्तर क्या

ज़ेब ग़ौरी

ऐ गर्दिश-ए-अय्याम हमें रंज बहुत है

ज़करिय़ा शाज़

मुझ तक निगाह आई जो वापस पलट गई

ज़करिय़ा शाज़

हम तुझ से कोई बात भी करने के नहीं थे

ज़करिय़ा शाज़

आप ने हाथ रक्खा मिरे हात पर

ज़ाहिदुल हक़

तमाम उम्र तिरी हम-रही का शौक़ रहा

ज़हीर काश्मीरी

मिरा ही बन के वो बुत मुझ से आश्ना न हुआ

ज़हीर काश्मीरी

किस को मिली तस्कीन-ए-साहिल किस ने सर मंजधार किया

ज़हीर काश्मीरी

कुछ न कुछ रंज वो दे जाते हैं आते जाते

ज़हीर देहलवी

हरीफ़-ए-राज़ हैं ऐ बे-ख़बर दर-ओ-दीवार

ज़हीर देहलवी

कुछ नहीं समझा हूँ इतना मुख़्तसर पैग़ाम था

ज़फ़र इक़बाल

कोई किनाया कहीं और बात करते हुए

ज़फ़र इक़बाल

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा

ज़फ़र गोरखपुरी

चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद

ज़फ़र गोरखपुरी

तेरी आँखों से मिली जुम्बिश मिरी तहरीर को

योगेन्द्र बहल तिश्ना

दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम आह-ओ-फ़ुग़ाँ

योगेन्द्र बहल तिश्ना

अता-ए-अब्र से इंकार करना चाहिए था

यासमीन हमीद

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