रंज Poetry (page 2)

याद-ए-ख़ुदा से आया न ईमाँ किसी तरह

यासीन अली ख़ाँ मरकज़

साया अगर नसीब हो दीवार-ए-यार का

यगाना चंगेज़ी

कारगाह-ए-दुनिया की नेस्ती भी हस्ती है

यगाना चंगेज़ी

आदम से बाग़-ए-ख़ुल्द छुटा हम से कू-ए-यार

वज़ीर अली सबा लखनवी

फ़िक्र-ए-रंज-ओ-राहत कैसी

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल है ग़िज़ा-ए-रंज जिगर है ग़िज़ा-ए-रंज

वज़ीर अली सबा लखनवी

देख कर ख़ुश-रंग उस गुल-पैरहन के हाथ पाँव

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

जो रंग-ए-इश्क़ से फ़ारिग़ हो उस को दिल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

हरीम-ए-नाज़ को हम ग़ैर की महफ़िल नहीं कहते

वासिफ़ देहलवी

अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता

वासिफ़ देहलवी

मौत आई मुझे कूचे में तिरे जाने से

वसीम ख़ैराबादी

हम अपने-आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते

वाली आसी

जा बैठते हो ग़ैरों में ग़ैरत नहीं आती

वाजिद अली शाह अख़्तर

दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

उन को रोज़ इक ताज़ा हीला एक ख़ंजर चाहिए

वहीद अख़्तर

जमाल-ए-नस्तरनी रंग-ओ-बू-ए-यासमनी

वारिस किरमानी

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

शहर से एक तरफ़ दूर बहुत

तिलोकचंद महरूम

ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा

तौक़ीर तक़ी

फिर तिरे हिज्र के जज़्बात ने अंगड़ाई ली

तसनीम फ़ारूक़ी

ख़िज़ाँ-नसीबों पे बैन करती हुई हवाएँ

तारिक़ क़मर

वो मेरे ख़्वाब की ताबीर तो बताए मुझे

तारिक़ क़मर

कौन सा मैं जवाज़ दूँ सूरत-ए-हाल के लिए

तारिक़ क़मर

इंतिज़ार

तनवीर अंजुम

हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बत

ताबाँ अब्दुल हई

न हो तू जिस में वो दिल भी है क्या दिल

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

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