रंज Poetry (page 4)

तंग थी जा ख़ातिर-ए-नाशाद में

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

है बद बला किसी को ग़म-ए-जावेदाँ न हो

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

अब तो जिस रोज़ से रूठी है मोहब्बत उस की

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया

शाज़ तमकनत

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

शाज़ तमकनत

क्या करूँ रंज गवारा न ख़ुशी रास मुझे

शाज़ तमकनत

आ कर नजात बख़्श दो रंज-ओ-मलाल से

शौक़ सालकी

रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर

शौक़ क़िदवाई

रूह को आज नाज़ है अपना वक़ार देख कर

शौक़ क़िदवाई

है शैख़ ओ बरहमन पर ग़ालिब गुमाँ हमारा

शौक़ बहराइची

मुझे तो रंज क़बा-ए-हा-ए-तार-तार का है

शाैकत वास्ती

एक आसेब का साया था जो सर से उतरा

शौकत काज़मी

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

आज फिर गर्दिश-ए-तक़दीर पे रोना आया

शकील बदायुनी

क्या चीज़ है ये सई-ए-पैहम क्या जज़्बा-ए-कामिल होता है

शकेब जलाली

दिन वस्ल के रंज-ए-शब-ए-ग़म भूल गए हैं

शैख़ मीर बख़्श मसरूर

दिल का बुरा नहीं मगर शख़्स अजीब ढब का है

शहज़ाद अहमद

नशात-ए-ग़म भी मिला रंज-ए-शाद-मानी भी

शहरयार

नसीब-ए-चश्म में लिक्खा है गर पानी नहीं होना

शहराम सर्मदी

मुझे तस्लीम बे-चून-ओ-चुरा तू हक़-ब-जानिब था

शहराम सर्मदी

मता-ए-पास-ए-वफ़ा खो नहीं सकूँगा मैं

शहराम सर्मदी

किताब-ए-दिल के वरक़ जो उलट के देखता है

शाहिद जमाल

दिए हैं रंज सारे आगही ने

शाहिद इश्क़ी

तेरे सिवा

शाहिद अख़्तर

इक तरफ़ तलब तेरी इक तरफ़ ज़माना है

शफ़ीक़ अहमद

मैं वो बे-चारा हूँ जिस से बे-कसी मानूस है

शाद लखनवी

लब-ए-जाँ-बख़्श पर जो नाला है

शाद लखनवी

क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और

शाद लखनवी

हाथ से हाथ मिला दिल से तबीअ'त न मिली

शाद बिलगवी

सुना के रंज-ओ-अलम मुझ को उलझनों में न डाल

शब्बीर नाज़िश

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