रंज Poetry (page 6)

किसी को उदास देख कर

साहिर लुधियानवी

तुम अपना रंज-ओ-ग़म अपनी परेशानी मुझे दे दो

साहिर लुधियानवी

जला है किस क़दर दिल ज़ौक़-ए-काविश-हा-ए-मिज़्गाँ पर

साहिर देहल्वी

चश्म-ए-मस्त-ए-साक़ी से दिल हुआ ख़राब-आबाद

साहिर देहल्वी

इस बे तुलूअ' शब में क्या तालेअ'-आज़माई

सहबा अख़्तर

न किसी से करम की उम्मीद रखें न किसी के सितम का ख़याल करें

सहर अंसारी

अब यही रंज-ए-बे-दिली मुझ को मिटाए या बनाए

सहर अंसारी

कुछ तो वफ़ा का रंग हो दस्त-ए-जफ़ा के साथ

साग़र मेहदी

सारी जफ़ाएँ सारे करम याद आ गए

साग़र ख़य्यामी

उमीदें मिट गईं अब हम-नफ़स क्या

सफ़िया शमीम

देख पाए तो करे कोई पज़ीराई भी

सईद शरीक़

अजब मौजूदगी है जो कमी पर मुश्तमिल है

सईद शरीक़

तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है

सदा अम्बालवी

करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में

साबिर वसीम

इक शक्ल बे-इरादा सर-ए-बाम आ गई

साबिर वसीम

इदराक ही मुहाल है ख़्वाब-ओ-ख़याल का

सबीला इनाम सिद्दीक़ी

मिले ग़ैरों से मुझ को रंज ओ ग़म यूँ भी है और यूँ भी

साइल देहलवी

जब कि सारी काएनात उस की निगहबानी में है

रोहित सोनी ‘ताबिश’

ज़िद हमारी दुआ से होती है

रियाज़ ख़ैराबादी

अपने मरने का अगर रंज मुझे है तो ये है

रिन्द लखनवी

मसर्रतों का खिला है हर एक सम्त चमन

रिफ़अत सुलतान

मकान-ए-दिल से जो उठता था वो धुआँ भी गया

रियाज़ मजीद

हो गया है एक इक पल काटना भारी मुझे

रियाज़ मजीद

नज़्ज़ारा-ए-जमाल ने सोने नहीं दिया

रेहाना रूही

कैफ़ नसीब अब कहाँ ग़ुंचों के भी जमाल में

रज़ा जौनपुरी

इस ए'तिबार से वो ज़ूद-रंज अच्छा है

राशिद मुराद

आइने से मुकर गया कोई

राशिद आज़र

खुला ये उन के अंदाज़-ए-बयाँ से

रशीद रामपुरी

अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं

रशीद रामपुरी

हम अजल के आने पर भी तिरा इंतिज़ार करते

रशीद लखनवी

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