रंज Poetry (page 3)

कुछ इस तरह ग़म-ए-उल्फ़त की काएनात लुटी

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

चैन कब आता है घर में तिरे दीवाने को

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

लिखा है गो तेरी क़िस्मत में 'शौकत' चश्म-ए-तर रखना

सय्यद काज़िम अली शौकत बिलगिरामी

जब मैं रोया हूँ वो रोए हैं ये उल्फ़त मेरे साथ

सय्यद काज़िम अली शौकत बिलगिरामी

दिल को तुम्हारे रंज की पर्वा बहुत रही

सय्यद काशिफ़ रज़ा

शगुफ़्ता हो के बैठे थे वो अपने बे-क़रारों में

सय्यद फ़रज़नद अहमद सफ़ीर

ज़माने में मोहब्बत की अगर बारिश नहीं होती

सय्यद आरिफ़ अली

रंज-ए-दुनिया हो कि रंज-ए-आशिक़ी क्या देखना

सय्यद अमीन अशरफ़

मुनव्वर और मुबहम इस्तिआरे देख लेता हूँ

सय्यद अमीन अशरफ़

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब

सय्यद अाग़ा अली महर

ख़्वाब आँखों से चुने नींद को वीरान किया

सुल्तान अख़्तर

नाज़-पर्वर्दा-ए-जहाँ तुम हो

सुलैमान अरीब

'अंजुम' पे जो गुज़र गई उस का भला हिसाब क्या

सूफ़िया अनजुम ताज

किसी में ताब-ए-अलम नहीं है किसी में सोज़-ए-वफ़ा नहीं है

सूफ़ी तबस्सुम

समझते हैं जो कमतर हर किसी को

सुदर्शन कुमार वुग्गल

निगाह मुझ से मिलाने की उन में ताब नहीं

सिया सचदेव

दिल से अब तो नक़्श-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ भी मिट गया

सिराज मुनीर

बिखरती टूटती शब का सितारा रख लिया मैं ने

सिद्दीक़ मुजीबी

भूली-बिसरी बात है लेकिन अब तक भूल न पाए हम

सिद्दीक़ मुजीबी

आरज़ू जीने की थी इम्कान जीने का न था

सिद्दीक़ मुजीबी

कार-ए-मुश्किल ही किया दुनिया में गर मैं ने किया

सिद्दीक़ शाहिद

अबस है दूरी का उस के शिकवा बग़ल में अपने वो दिल-रुबा है

श्याम सुंदर लाल बर्क़

ऐ हज़रत-ए-ईसा नहीं कुछ जा-ए-सुख़न अब

शोला अलीगढ़ी

कभी वो रंज के साँचे में ढाल देता है

शोभा कुक्कल

जब तिरा आसरा नहीं मिलता

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

पूछते क्या हो जो हाल-ए-शब-ए-तन्हाई था

शिबली नोमानी

दम-ए-अख़ीर भी हम ने ज़बाँ से कुछ न कहा

शेर सिंह नाज़ देहलवी

क्या ग़रज़ लाख ख़ुदाई में हों दौलत वाले

ज़ौक़

जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा

ज़ौक़

था ग़ैर का जो रंज-ए-जुदाई तमाम शब

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

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