रंज Poetry (page 10)

ख़त ज़मीं पर न ऐ फ़ुसूँ-गर काट

ग़ुलाम मौला क़लक़

दस्त-ए-राहत ने कभी रँज-ए-गिराँ-बारी ने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

आज आईने में जो कुछ भी नज़र आता है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

बे-चेहरगी-ए-उम्र-ए-ख़जालत भी बहुत है

ग़ज़नफ़र हाशमी

ख़ला के दश्त से अब रिश्ता अपना क़त्अ करूँ

ग़ज़नफ़र

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज

ग़ालिब

वाँ पहुँच कर जो ग़श आता पए-हम है हम को

ग़ालिब

तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है

ग़ालिब

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं

ग़ालिब

मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है

ग़ालिब

कार-गाह-ए-हस्ती में लाला दाग़-सामाँ है

ग़ालिब

कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए

ग़ालिब

जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

ग़म खाने में बूदा दिल-ए-नाकाम बहुत है

ग़ालिब

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब

ग़ालिब

मेहनत-ओ-दर्द-ओ-रंज-ओ-ग़म और अलम ये रात दिन

फ्रांस गॉड्लिब क्वीन फ़्रेस्को

ख़राब-हाल हूँ हर हाल में ख़राब रहा

फ़ज़लुर्रहमान

लहू ही कितना है जो चश्म-ए-तर से निकलेगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

अलमिया-ए-नक़्द

फ़े सीन एजाज़

दिल में मोहब्बतों के सिवा और कुछ नहीं

फ़ातिमा वसीया जायसी

दिल नहीं मिलने का फिर मेरा सितमगर टूट कर

फ़रोग़ हैदराबादी

खो बैठी है सारे ख़द-ओ-ख़ाल अपनी ये दुनिया

फ़रहान सालिम

रग-ओ-पै में सरायत कर गया वो

फ़रीद परबती

हमें भी अपनी तबाही पे रंज होता है

फ़रीद जावेद

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

कैसे मंज़र हैं जो इदराक में आ जाते हैं

फ़रह इक़बाल

कभी न सोचा था मैं ने उड़ान भरते हुए

फ़राग़ रोहवी

वा-ए-नादानी ये हसरत थी कि होता दर खुला

फ़ानी बदायुनी

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