रंज Poetry (page 12)

यही समझा हूँ बस इतनी हुई है आगही मुझ को

ब्रहमा नन्द जलीस

मसर्रत को मसर्रत ग़म को जो बस ग़म समझते हैं

ब्रहमा नन्द जलीस

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया

बिस्मिल साबरी

ये कैसी आग अभी ऐ शम्अ तेरे दिल में बाक़ी है

बिस्मिल इलाहाबादी

ज़मीं नई थी अनासिर की ख़ू बदलती थी

बिलाल अहमद

रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी

भारतेंदु हरिश्चंद्र

ख़्वाहिश-ए-पर्वाज़ है तो बाल-ओ-पर भी चाहिए

भारत भूषण पन्त

सुन के सारी दास्तान-ए-रंज-ओ-ग़म

बेख़ुद देहलवी

आप को रंज हुआ आप के दुश्मन रोए

बेख़ुद देहलवी

उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे

बेख़ुद देहलवी

ख़ुदा रक्खे तुझे मेरी बुराई देखने वाले

बेख़ुद देहलवी

बेवफ़ा कहने से क्या वो बेवफ़ा हो जाएगा

बेख़ुद देहलवी

नए ज़माने में अब ये कमाल होने लगा

बेकल उत्साही

शादी ओ अलम सब से हासिल है सुबुकदोशी

बेदम शाह वारसी

ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

जो है याँ अासाइश-ए-रंज-ओ-मेहन में मस्त है

बहराम जी

क़ारूँ उठा के सर पे सुना गंज ले चला

ज़फ़र

नहीं इश्क़ में इस का तो रंज हमें कि क़रार ओ शकेब ज़रा न रहा

ज़फ़र

हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते

ज़फ़र

गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी

ज़फ़र

उस आँख से वहशत की तासीर उठा लाया

अज़्म बहज़ाद

ये ग़म नहीं कि मुझ को जागना पड़ा है उम्र भर

अज़ीज़ तमन्नाई

उठा के मेरे ज़ेहन से शबाब कोई ले गया

अज़ीज़ तमन्नाई

जफ़ा देखनी थी सितम देखना था

अज़ीज़ हैदराबादी

ग़म-ए-हयात ओ ग़म-ए-दोस्त की कशाकश में

अज़ीज़ हामिद मदनी

हज़ार वक़्त के परतव-नज़र में होते हैं

अज़ीज़ हामिद मदनी

फ़िराक़ से भी गए हम विसाल से भी गए

अज़ीज़ हामिद मदनी

हमारे चेहरे पे रंज-ओ-मलाल ऐसा था

अज़हर नैयर

ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था

अज़हर इनायती

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