ग़म-ए-हयात ओ ग़म-ए-दोस्त की कशाकश में
हम ऐसे लोग तो रंज-ओ-मलाल से भी गए
Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1212) Peoples Rate This
वफ़ा की रात कोई इत्तिफ़ाक़ थी लेकिन
मिरा चाक-ए-गिरेबाँ चाक-ए-दिल से मिलने वाला है
फ़िराक़ से भी गए हम विसाल से भी गए
महक में ज़हर की इक लहर भी ख़्वाबीदा रहती है
सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
वो लोग जिन से तिरी बज़्म में थे हंगामे
सलीब ओ दार के क़िस्से रक़म होते ही रहते हैं
क्या हुए बाद-ए-बयाबाँ के पुकारे हुए लोग
कह सकते तो अहवाल-ए-जहाँ तुम से ही कहते
ज़ंजीर-ए-पा से आहन-ए-शमशीर है तलब
अलग सियासत-ए-दरबाँ से दिल में है इक बात
मिरी आँखें गवाह-ए-तल'अत-ए-आतिश हुईं जल कर